अजीब सी दास्ताँ दिखा रही है ज़िंदगी ,
मेरे आसियाने में |
बहुत मुश्किल से मिला था रूह को सुकून इस
इस ज़माने में |
लगा था ज़िंदगी सवर रही है
बस इक तुम्हारे आने से
शायद नज़र लगी किसी हवा के झोके का
जो बिखेर गया मेरे सारे सपने
इसी ज़माने में |
बहुत कोशिश करते है
जो खुद की दस्ता सुनाने की
भर आती है आंखे
आप बीती बताने में |
बिखरी अपने सपनो को
दिल में संजोया है हमने
ताकि मै बिखर न जाऊ
फिर इस ज़माने में |
मेरे आसियाने में |
बहुत मुश्किल से मिला था रूह को सुकून इस
इस ज़माने में |

बस इक तुम्हारे आने से
शायद नज़र लगी किसी हवा के झोके का
जो बिखेर गया मेरे सारे सपने
इसी ज़माने में |
बहुत कोशिश करते है
जो खुद की दस्ता सुनाने की
भर आती है आंखे
आप बीती बताने में |
बिखरी अपने सपनो को
दिल में संजोया है हमने
ताकि मै बिखर न जाऊ
फिर इस ज़माने में |
Very nice poem
ReplyDeleteThank you
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